अनज़ान
November 13, 2012
किससे कहूँ, कैसे कहूँ,
कहूँ मैं, या न कहूँ,
कह दूँ तो तुझसे रुसवा होऊँ,
न कहूँ तो खुद से रुसवा होऊँ,
आज मैं चुप-चाप सहूँ,
या छुप के आप ही रोऊँ,
रौशनी में आप को भरूँ,
या भरे अँधियारे में सोऊँ,
‘अनज़ान’ तू खुद से है कितना अनजान,
अनजाने में ही पहचान को खोऊँ।
~अनज़ान राहगीर
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