तलाश…
November 11, 2012
अनकही में कही की तलाश की,
गलत में सही की तलाश की।
कौन मरता है मरने के लिए,
हमने तो घुटन में साँस की तलाश की।
पंख तो फड़फड़ा रहे थे, पंछी के,
हाँ उसने मगर कब खंज़र की तलाश की।
पसीज रहा था दिल उसका, उसके याद में,
बड़े ही ज़ोर से उसने आवाज़ की तलाश की।
आज़ दिन आ गया है कैसा ‘अनज़ान’,
तुमने फिर से खामोशियों में अक्षरों की तलाश की।
– अनज़ान राहगीर
मेरी छोटी सी प्रयास कुछ नया लिखने की ….
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